Author Gulab Khandelwal देखते-देखते, हमारा सारा जीवन एक सपने की तरह कट जाता है, हम जो कुछ भी करें, दो-चार शब्दों में अँट जाता है; शेष तो शून्य है, माना पर कहाँ जाता है भागफल जब सब कुछ काल-भाजक द्वारा पूरा-का-पूरा बँट जाता है? Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Log in or register to post comments