- by Gulab Khandelwal देखते-देखते, हमारा सारा जीवन एक सपने की तरह कट जाता है, हम जो कुछ भी करें, दो-चार शब्दों में अँट जाता है; शेष तो शून्य है, माना पर कहाँ जाता है भागफल जब सब कुछ काल-भाजक द्वारा पूरा-का-पूरा बँट जाता है? Rate this poem: Report SPAM Reviews Post review No reviews yet. Report violation Log in or register to post comments