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काया यह दीपक बने मिले प्रीति का तेल.
अपनेपन की ज्योति से आपस में हो मेल..

चाहत बाती-तेल की जले ज्योति भरपूर.
एक संग मिलकर अमर अंधकार हो दूर..

जलती बाती प्रेम की करें हवाएं खेल.
आँचल से रक्षा करें भरें नेह का तेल..

बहुतेरे मज़हब मिले चले बहुत से धर्म.
सबमें दीपक ज्योति ही सत्य यही है मर्म..

ज्योति बिना दीपक विफ़ल यह शरीर बिन प्राण.

बिन प्रकाश मिथ्या जगत नहीं विश्व कल्याण..

सारे मिलकर संग रहें सबमें उपजे प्यार.

आलोकित जग को करे दीवाली त्यौहार..

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