Untitled by Ashok Chakradhar एक अंकुर फूटा पेड़ की जड़ के पास । एक किल्ला फूटा फुनगी पर । अंकुर बढ़ा जवान हुआ, किल्ला पत्ता बना सूख गया । गिरा उस अंकुर की जवानी की गोद में गिरने का ग़म गिरा बढ़ने के मोद में । Rate this poem: Report SPAM Reviews Post review No reviews yet. Report violation Log in or register to post comments