Untitled by Ambarish Srivastava ये चंचल-सी रेत नहीं बंधती बंधन में भरभराकर फिसल जाती है आती है जब-जब वही सीमेंट की संगत में ईंट-पत्थर तक बाँध देती है। Tags: Short PoemsRate this poem: Report SPAM Reviews Post review No reviews yet. Report violation Log in or register to post comments