Untitled by Bharatendu Harishchandra उठहु उठहु प्रभु त्रिभुवन राई । तिनके अरिन देहु अकुलाई । रन महँ तिनहिं गिरावहु मारी । सब सुख दारिद दूर बहाओ । विद्या और कला फैलाओ । हमरे घर मँह शांति बसाओ । देहु असीस हमै सुखकारी । Tags: Short PoemsRate this poem: Report SPAM Reviews Post review No reviews yet. Report violation Log in or register to post comments