Author Kazim Jarwali मै लाख सच था, मगर सच पा ध्यान देता कौन, बिकी हुई थीं ज़बाने बयान देता कौन । जब आँधियों ने किया था हमारे घर का सफ़र, सभी थे महवे तमाशा अज़ान देता कौन । न रंगता अपना ही चेहरा तो और क्या करता, हमारे खून को 'काज़िम' अमान देता कौन ।। Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Log in or register to post comments