Untitled by Jagdish Gupt आँख-सी उजली धुली यह रात हिम शिखर पर रश्मियों के पाँव रख कर बढ़ चली कहा मैंने - रुको मैं भी साथ चलता हूँ गगन की उस शांत नीली झील के निस्तब्ध तट पर बैठ कर बातें करेंगे। Rate this poem: Report SPAM Reviews Post review No reviews yet. Report violation Log in or register to post comments