Author Kaka Hathrasi लुट जाने का डर था उसका आबादी में घर था उसका उस बस्ती में जीना कैसा मरना भी दूभर था उसका दिल की बातें खाक समझता दिल भी तो पत्थर था उसका उड़ने में ही था जो बाधक अपना घायल पर था उसका रहता था वो डरा-डरा सा कहने को तो घर था उसका Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Log in or register to post comments