Author Ashok Chakradhar चलती रहीं चलती रहीं चलती रहीं बातें यहाँ की, वहाँ की इधर की, उधर की इसकी, उसकी जने किस-किस की, कि एकएक सिर्फ़ उसकी आँखों को देखा मैंने उसने देखा मेरा देखना । और... तो फिर... किधर गईं बातें, कहाँ गईं बातें ? Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Log in or register to post comments