Author Tryambak Bapuji Thombre मधुयामिनि नील-लता हो गगनीं कुसुमयुता धवलित करि पवनपथा कौमुदि मधु मंगला- दिव्य शांति चंद्रकरीं आंदोलित नील सरीं गिरिगिरिवरि, तरुतरुवरि पसरे नव भूतिला- सुप्रसन्न, पुण्य, शांत रामण्यकभरित धौत या मंगल मोहनांत विश्वगोल रंगला. Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Log in or register to post comments