Author Kaka Hathrasi अपने ग़म से हटकर कब था वो इन्साँ पैग़ंबर कब था जिसके बूढ़े सर पर पत्थर बचपन उसका पत्थर कब था कातिल की आँखों में रहता रोती माँ का मंज़र कब था प्यास समझता क्या औरों की प्यासा रहा समंदर कब था रोज बनानी थी छत उसको उसके सर पर अंबर कब था Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Log in or register to post comments