Author Kazim Jarwali हवा में ज़हर घुला है मगर मै जिंदा हूँ , हर एक सांस सज़ा है मगर मै जिंदा हूँ । किसी को ढूंडती रहती हैं पुतलियाँ मेरी, बदन से रूह जुदा है मगर मै जिंदा हूँ । मेरे ही खून से रंगीं है दामने क़ातिल , मेरा ही क़त्ल हुआ है मगर मै जिंदा हूँ ।। Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Log in or register to post comments