Untitled

उठहु उठहु प्रभु त्रिभुवन राई ।
तिनके अरिन देहु अकुलाई ।
रन महँ तिनहिं गिरावहु मारी ।
सब सुख दारिद दूर बहाओ ।
विद्या और कला फैलाओ ।
हमरे घर मँह शांति बसाओ ।
देहु असीस हमै सुखकारी ।

Rate this poem: 

Reviews

No reviews yet.