Untitled

पीरी:
ये आँधी ये तूफ़ान ये तेज़ धारे
कड़कते तमाशे गरजते नज़ारे
अंधेरी फ़ज़ा साँस लेता समन्दर
न हमराह मिशाल न गर्दूँ पे तारे

मुसाफ़िर ख़ड़ा रह अभी जी को मारे

शबाब:
उसी का है साहिल उसी के कगारे
तलातुम में फँसकर जो दो हाथ मारे
अंधेरी फ़ज़ा साँस लेता समन्दर
यूँ ही सर पटकते रहेंगे ये धारे

कहाँ तक चलेगा किनारे-किनारे

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