Untitled
इस दुनिया में जितनी भी पत्थरदिल औरतें हैं उनसे प्रेम करो
और उन्हें पवित्र मूर्तियों में तब्दील कर दो
जान लो वे निर्जन में छूट गई हैं अपनी कठोरता में उन्मत्त
जिनके आगे कोई दिया नहीं जलता
पथरीला पारितोषिक है यह प्रेम का कि
उनके स्वप्नों में हमेशा रुदन में लहराती अखंड ज्योति आती
आता जीवन में जो भी उनके आकार पर बेहद मस्ताता
वे अपने मुलायम रेशों को कुबेरकोष की तरह छिपातीं
कुछ सदियां ही एक पत्थर को मैं रुई कहता आया
एक सुबह उठा उसे रुई में बदला हुआ पाया
Reviews
No reviews yet.