Author Jaishankar Prasad बीती विभावरी जाग री! अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी। खग कुल-कुल सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई मधु मुकुल नवल रस गागरी। अधरों में राग अमंद पिये, अलकों में मलयज बंद किये तू अब तक सोई है आली आँखों में भरे विहाग री। Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Log in or register to post comments